मैं सोच हूं या स्वार्थ हूं
मैं सोच हूं या स्वार्थ हूं
मैं सोच हूं या स्वार्थ हूं या समय की गुलाम
या फिर ज़िन्दगी जीने की बेला हूं
कौन सी पहचान मेरे काम आएगी
या फिर तकदीर के लकीर ही मुझे बताएगी
क्या, कितना किस्मत में लिखा है
जो जीवन को पाना है या
अपनी खुद की खुशी ही जीवन में रंग लाएगी
विश्वास खुद के सांसों पर करूं या
अपनों संग बनाए रिश्तों पर
ना जाने कब कौन छोड़ चले जाए
दर्द की पनाह मुझे दे चले जाए
जानें किसने सुनी थी अरमानों का सच होना
या टूटे हुए दिल का पुकार सुनना
है किसमे कितना मंजूरी
ये कौन मुझको बतलाए
मन की आवाज से oपूछूँ या
प्रभु के सामने गुहार लगाऊँ
अपने किए कर्मो कर्तब्य के हिसाब की
सुने मन की आवाज उतना ही
जितना कि प्रभु सुनाना चाहे या
फिर औरों की ना सुनना चाहे
मैं सोच हूं या स्वार्थ हूं या...।