उदास मन
उदास मन
मन मेरा आज साखी बहुत ही उदास है
उजाले को भी आज अंधेरे की प्यास है
जाने कौन से मोड़ पर हम आ गये हैं
मंजिल पास होकर भी दूर की घास है
किसे में दोष दू,कैसे खुद को होश दूं?
आजकल पानी से भी लग रही आग है
बेचारे सांप तो यूँ ही हो रहे बदनाम हैं
असल सांप पिये इंसानी रूपी शराब है
जितना मधुर कोई इंसान बोलता है,
उतना मधुर तो शहद भी न बोलता है,
मीठे से ज़्यादा शुगर हुई बोली ख़ास है
मन मेरा आज साखी बहुत ही उदास है
जिधर देखूं उधर बिन मानवता की राख है
सब सोच रहे बस अपने स्वार्थ की बात है
सूर्य से निकल रही आज रोशनी खराब है
अपना ही लहूं दिखा रहा आज आंख है
मन मेरा आज साखी बहुत ही उदास है
हर तरफ खो रही रिश्तों में शर्म-लाज है
फिर भी हमे करना साखी बड़ा प्रकाश है
हम टूटे आईने के अक्स बड़े ही खराब है
जो चीज ये ज़माना नही देख सकता है,
वो कवियों के जेहन में करता आवाज है
देती है हमे प्ररेणा दुःख की घनी लहरें,
उठो मिटाओ तुम तम का घना राज है
गगन में उड़ो दिल मे तुम्हारे उन्मुक्त बाज है
जीत लो दुनिया,बचो लो तुम इंसानियत,
तुम्हारे पास सच का बहुत बड़ा परवाज है
हर रिश्ते में बजा दो अच्छाई की साज है
न रहेगा कभी किसी साखी का दिल उदास है
हंसेगा जग दरिया मे,चिल्लायेगा अब स्वराज है।