वो भी वक्त था
वो भी वक्त था
कांप रही थी रुह मेरी!
तड़प रही थी मैं!
जरुरत थी उस वक्त!
क्योंकि अनजान थी मैं!
कुछ होने को अनहोनी थी!
तूफान आने को था!
हिल सी गयी थी मैं!
क्योंकि वो भी वक्त था!
जब है वानियत छू सी गयी!
वक्त थम सा गया था!
आंह भर सी गयी थी!
सासें रुक सी गयी थी!
छटपटाई थी मैं!
फड़फड़ाई थी मैं!
किसी की हवस का शिकार थी मैं!
पंख लगे ही थे,
जो कट से गए!
न समझ सी थी!
वो भी वक्त था!
किसी ने इसांनियत छोड़ी थी!
बेर्शमी की हर हद तोड़ी थी!
लाचार थी मैं!
शर्मशार थी मैं!
वो भी वक्त था!
आखों में नमी थी!
बदन में गंद मची थी!
दिल रो रहा था!
कड़वाहट बढ़ रही थी!
फिर भी वो न रुका!
न वो थमा!
दर्द बढ़ता गया!
चीखें उठती गई!
वो भी वक्त था!
धड़कन तेज होती गई!
खुद को टूटता देखती गई!
खून से सनी थी!
जख्मों से लदी थी!
बू आती सी गयी!
एक पल में जिदंगी बदल सी गयी!
बेजान सी पड़ीं थी मैं!
क्योंकि वो भी वक्त था!!