STORYMIRROR

Kajal Singh

Abstract Tragedy Inspirational

3  

Kajal Singh

Abstract Tragedy Inspirational

लाचार!!

लाचार!!

1 min
290

सहमे से हुए माहौल में, सहमी हुई एक लड़की है,

रात तो भयानक है उसके लिए दिन में भी वो डरती है,

किस गली किस सड़क पर कोई अंजान उसे डराएगा ? 

कौन खींच लेगा दुपट्टा उसका, कौन उठाकर ले जाएगा ? 

कौन उसको अपना वहशीपन दिखाएगा ?

और कौन उसकी आबरू को नीलाम कर जाएगा ?

हर किसी की नजरों में वो क्या एक आम सा खिलौना है ?

बिस्तर पर पड़ा क्या उसका वजूद बस एक बिछौना है ?

ये समाज, सारा कुसूर उसके कपड़ों का बताएगा। 

अब ये सवाल उस लड़की को कैसे ना डराएगा ?

पुरुष प्रधान समाज यहीं लड़खड़ाता है।

"जरूरत" में ही बस स्त्री की साथ याद आती है।

वही सहमी लड़की अब खुद का साहस दिखाती है।

बहके हुए समाज को वो चांद तक ले जाती है। 

जन्म देती है संतान को और वंश इनका बढ़ाती है।

और फिर भी इन्हें वो लाचार नजर आती है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract