लाडो
लाडो
दिन बेशर्म सा गुजर गया आज भी,
कट गया तुम्हारे बगैर जरा जरा कर के।
रात चुपचाप चली आती है दबे पॉव
मगर जागती रहती है मेरे साथ
मेरी तरह मायूस हो जाती है
जब तुम्हारा सर मेरी बांह पर नहीं पाती
तुम अक्सर सो जाती थी उसी पर
सुबह का तो हाल ही मत पूछो
उसे चेहरा तुम्हारा नहीं भूलता, सोया सा
मासूम सा,आखें मलते देखती थी तुम
कभी कभी अहसास दगा दे जाते हैं
लगता है जैसे तुम देख रही हो आज भी
मेरी सारी लोरियाँ उदास है लाडो
अब उन्हे कोई नहीं सुनता