गांव बनाम शहर
गांव बनाम शहर
लगता बड़ा भोला बड़ा सादा बड़ा सच्चा है
तेरे शहर से तो मेरा गांव अच्छा है
वहां मैं अपने पिता के नाम से जाना जाता हूँ
और यहाँ मकान नंबर से पहचाना जाता हूँ
वहां फटे कपड़ों में भी तन को ढका जाता है
यहाँ खुले बदन पर टैटू छापा जाता है
यहाँ बंगले है, कोठी है, कार है
वहां घर, परिवार और संस्कार है
यहाँ चीखों की आवाजें दीवारों से टकराती है
वहां दूसरों की सिसकियाँ भी सुनी जाती है
यहाँ शोर शराबे में कहीं खो जाता हूँ
वहां टूटी खटिया पर भी आराम से सो जाता हूँ
मत समझो कम हमें कि हम गांव से आयें हैं
अरे तेरे शहर के बाजार को मेरे गांव ने ही सजाया है।
वहां इज्जत में सिर सूरज की तरह ढलते है
चल आज फिर उसी गांव की ओर चलते हैं।