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याद करते होंगे मुझे...

याद करते होंगे मुझे...

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ढूंढते होंगे जरूर तुम मुझे भीड़ के शोरों में...

गुम हो जाते होगे कशिश की चुभती हिलोरों में...


याद आती होगी वो शाम की चाय कुछ नमकीन बातें...

कोसते होंगे तुम्हें तुम्हारे बेफिजूल बेपरवाह इरादे...


आजाद मस्तमौला अंदाज मेरा, जरूर तुमको खली होगी...

जब भी भीड़ में मेरी बात जोरों से चली होगी....


लोगों भीड़ में भी खुद को तन्हा अकेला पाए होगे...

उस वक्त मेरी खलती कमी पर थोड़ा कशमशाए होगे....


आज भी उंगलियों के बीच मेरी उंगलियों की पकड़ खोजते होंगे...

क्यों न लौटा मैं अब तक, ये बात हर शाम ढलते सोचते होगे...


सुनो परेशान मत हो, मैं लौटूँगा जरूर थोड़ी शाम तो होने दो...

कुछ मेरे, कुछ तुम्हारे चर्चे सरेआम तो होने दो...


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