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सच

सच

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बूढ़ा टपरा, टूटा छप्पर और उस पर बरसातें सच

उसने कैसे काटी होंगी, लंबी-लंबी रातें सच।


लफ़्जों की दुनियादारी में आँखों की सच्चाई क्या?

मेरे सच्चे मोती झूठे, उसकी झूठी बातें, सच।


कच्चे रिश्ते, बासी चाहत, और अधूरा अपनापन

मेरे हिस्से में आई हैं ऐसी भी सौग़ातें, सच।


जाने क्यों मेरी नींद के हाथ नहीं पीले होते

पलकों से लौटी हैं कितने सपनों की बारातें, सच।


धोखा खूब दिया है खुद को झूठ मूठ किस्सों से

याद मगर जब करने बैठे याद आई है बातें सच।



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