आषाढ़ के आखिरी दिन
आषाढ़ के आखिरी दिन
बादलों की अठखेलियाँ तरसाती लगे हैं
बार बार बादलों को धकिया के
आसमान की छाती पे मूँग दलती धूप
मुँह चिढ़ाती सी लगे है
बूँदों की प्रतीक्षा का अंतिम दिन
नखलिस्तान सा लगे है
मैं एक तितली के पंखों से बनी छतरी हूँ
रंग हैं रेशमी एहसास भी
बार बार बाहर झाँकती हूँ
बादलों की आस में
पर बूंदों के हुस्न का स्पर्श नहीं कर पाती
जबसे एक स्त्री के लिए आई हूँ
नई नकोर ही रखी हूँ
टकटकी लगाकर तलाश रही हूँ
अपने नाम की बारिश
ये आषाढ़ भी मुझे
अनछुए ही चला जायेगा क्या?
आषाढ़ मात्र नमी लिए थ
ा
जल से रहित था उसका पात्र
सबकी आँखें प्रतीक्षा की प्रत्यंचा पर चढ़ी
उदास ही रहीं
चाँद बादलों की चिलमन में छुपा
निष्ठुर प्रियतम था
चंद्रिकाएं उतारू थीं
ऐयारी पर
धरती बाम पर इंतज़ार करती
विरहणी थी
बादलों के जवाबी ख़त नदारद थे
सूरज की आंखमिचौली से
दिन ठिठका हुआ हिरण था
नदियाँ झीलें पोखर बावड़ी
भेज रहीं थीं, शिकायती चिट्ठियाँ
पर छली आषाढ़ तरसाता ही रहा
छा छा के उम्मीदें बंधा बंधा के
अपना निकम्मा कार्यकाल पूरा कर
निकल गया, बिना बरसे ही
सावन को सौंप अपनी पेंडिंग फ़ाइल