चीखता सन्नाटा
चीखता सन्नाटा
मानव के कुत्सित विचार थे,
अपनी पूर्ण रवानी में।
थी लाचार भिखारिन इक,
कट गए थे पैर जवानी में।
छूटा था साथ प्रियतम का,
और लोगों ने दुत्कार दिया।
अपनी इच्छा वह कर्म करे,
इसका संक्षिप्त अधिकार दिया।
सम्मान संजोए दामन में,
वो लेने भिक्षा निकल पड़ी।
हाथों से घिसटती थी आगे,
यह देख दुर्गति रो सी पड़ी।
बैठी है तरुवर की नीचे,
वह अपनी मुट्ठी को भींचे।
सहमी सहमी सकुचाई सी,
कुछ कुछ आंखें ललचाई सी।
पिचके कपोल अधखुले नयन,
झुर्रियां बदन पर छाई है।
बेबसी झलकती भावों से,
शोकाकुल हुई तरुणाई है।
मूर्ति सी स्थापित है वो,
चौराहे के कुछ दूर इधर।
केवल सिर हिलता है उसका,
बेचैन ताकती इधर-उधर।
वो शून्य ताकती अनायास,
निज चिंतन में डूबी डूबी,
उलझी उलझी लट बिखरी सी।
वो जीवन से ऊबी ऊबी,
नयन बने निष्प्राण,
सजग होते हैं आहट को सुनकर।
व्यथित हृदय का भाव,
झलकता है उसके मस्तक पर।
झुक जाती है वह चरणों पर,
हर आने वाले के बार बार,
आंचल फैला देती आगे,
रो रो कर करती है पुकार।
देता जा भाई कुछ मुझको,
देने वाला देगा तुझको।
कल्याण करेगा तेरा रब,
दो पैसे का कर दान मुझे।
मेरा आंचल तू भरता जा,
कुछ पुण्य संकलित करता जा।
देने वाला सब देख रहा,
निज इच्छा से कुछ देता जा।
घर बार रहेगा सुखी तेरा।
दरबार रहेगा भरा भरा,
हर बूढा बच्चा सुखी रहे।
भगवान करे कल्याण तेरा।
जो लोग गुजरते राहों से,
पल भर को वो थम जाते थे।
आंखों में तैरती व्यथा देख,
दो पैसे वो दे जाते थे।
हर रोज स्याह रजनी में घुल,
गूंजती थी आह भरी सांसें।
घुटनों को छाती में दाबे,
वो रोज बांधती थी आसें।
अफसोस यहां पर कुछ ऐसे,
जिनके विचार मिलते नहीं।
देखा न जिन्होंने प्रकृति ढंग,
वो क्या जाने, क्या चीज सही।
फटे चीथड़े में लिपटी,
निज सम्मान संजोए किसी तरह।
भरती थी पेट मांग भिक्षा,
जीती थी जीवन किसी तरह।
पर हाय वासनायुक्त पुरुष,
निज मर्यादा का त्याग किया।
वह दीन हीन गंभीर दशा,
कुछ समझ नहीं उसको आया।
चौराहे से आगे आते,
वे धीरे धीरे मुस्काते।
कुछ पैसे रखते आंचल में,
अधखुली छातियां छू लेते।
देख बेबसी को अपनी,
हाथों से आंचल छूट गया।
बह चली दृगों से अश्रुधार,
और सब्र बांध तब टूट गया।
घिर आई रजनी चांद छोड़,
सन्नाटा सन सन गूंज उठा।
वैभव मिट गया दिवाकर का,
झल्लाया उल्लू चीख उठा।
उसकी लाचारी की हालत का,
लिया फायदा लोगों ने।
सांसें उसांस में बदल गई,
तब त्याग दिया था लोगों ने।
थी रात अंधेरी लुटा स्वप्न,
तब हृदय विदीर्ण हुआ उसका।
अपलक निहार उठी आंखें,
इच्छा निर्मूल हुआ उसका।
सब जान जान अंजान बने,
मुंह फेर देखते चले गए।
बहे दृगो से अश्रु जहां,
लोग ठोकरें लगा गए।
फिर उसे उठाकर फेंक दिया,
बहती सरिता की बीच धार।
वह अकह कहानी थी उसकी,
जिसमें करुणा थी अपार।
कुछ सिक्के बंधे थे पल्लू में,
वो चौराहे पर गए बिखर।
छोड़ी उसने सारी दुनियां,
हो गया खत्म जीवन का सफर।
डूब गई उसकी सांसें,
मौन हो गया चौरस्ता।
बढ़ गए लोग अनसुना कर,
और रहा चीखता सन्नाटा।