मेरा जिगरी दोस्त
मेरा जिगरी दोस्त
मैं रोज़
रेलगाड़ी से
सफ़र करता था
नौकरी के लिए
अपने गांव से दूर
शहर को जाता था
रोज़
मुलाकात होती थी
बालिग-नाबालिग
भिखारियों से
और
ताली बजाते
हिजड़ों से
उन भिखारियों
और
हिजड़ों पर
हर रोज़
मैं पैसे खर्च किए करता था
और मेरा सीना
चौड़ा हो उठता था कि
मैं भी
किसी का
भला कर रहा हूं
जबकि
उन्हीं के मुंह से
निकलता था
भगवान तुम्हारा भला करे
मेरा दोस्त
जो सालों से
मेरा जिगरी दोस्त था
हर रोज़
वक्त निकालकर
गरीब बच्चों को
मुफ्त में
पढ़ाया करता था
एक दिन
वह अपने
गरीब बच्चों के
बारे में कहने लगा
उसके तीन बच्चों का
नवोदय विद्यालय में
चयन हुआ है
अब मुझे
समझ में आया
कि मेरे उस दोस्त ने
अपने गरीब बच्चों का
भला किया था।