और मैं कवि बन गया
और मैं कवि बन गया
बचपन से ही
कविता लिखने की
आदत सी थी मेरी
सपना था
मैं भी कभी
बड़े न सही
लेकिन कवि
जरूर बनुंगा
और मैं कवि बन गया
मेरे आस-पड़ोस की
घटनाएं
खबरें
तस्वीरें
और
न जाने क्या-क्या
कविता के
माला में पिराता था
और मैं कवि बन गया।
स्कूल जाते बच्चे
और
स्कूल नहीं जाते बच्चे
झगड़ालू
नौटंकी
कलाकर
सब मेरे
कविता में
जीते,
कभी नंगे
कभी भूखे
कभी खुशी
कभी गम में
और मैं कवि बन गया।
पहाड़ के उस पार
मांदर के थाप पर
विवाह में नाचते-गाते लोग
पहाड़ में
शिकार पर्व
मानाते शिकारी
और
सकरात पर्व की
जिलपिठा
मेरी कविता में आते हैं
और मैं कवि बन गया।
कभी बुढ़ापे की लाठियां
कभी दिव्यांगों की बैसाखियां
कभी किसानों का हल
कभी मछुआरों की जाल
मेरे कविता में आई
और मैं कवि बन गया।
कभी लोरियां
कभी बालगीत
कभी सोेहराई गीत
कभी दासांई गीत
कभी सिंगराई के जंगली गीत
मेरी कविता को श्रुंगार किया
और मैं कवि बन गया।