ईस्क़ मुझसे मत लड़ाओ
ईस्क़ मुझसे मत लड़ाओ
मैं
अभी-अभी जवान हुआ था
इसका पता मुझे
एक लड़की की ओर
आकर्षित होकर चला था।
जो मुझे देख कर
मुस्कुराई थी,
आंख मारी थी
और
अपने खुबसुरत हाथों की
खुबसुरत ऊंगलियों से
दिल का चिन्ह बना कर
मुझे दिखाई थी।
मेर तो
खुशी का ठिकाना न रहा,
कई रातों तक नींद
और पेट की भुख भी
मुझसे दूरी बनाए रही,
मेरे दिलो-दिमाग में
उसी का चेहरा,
उसी के नखरे,
उसी की अदाओं ने
मुझे छकाए रखा
और
मैं दिवाना होता चला गया।
छुप-छुप कर
उसे देखता था,
वह भी
मुझे देखकर मुस्कुराती थी,
मुझे लगने लगा
अब वह प्यार करती है,
मैं तो
प्यार में बहकता चला गया,
और एक दिन
उसके नाम
एक प्यार भरी चिट्ठी
लिख डाली,
उस प्रेम पत्र को
अपने हाथ में दबाए
चौराहे की
उस खम्भा के आड़ में
उसे ससंकोच थमा दिया।
दिल मेरा
जोर जोर से धड़कने लगा
उसकी ओर से
जवाब आने में भी
देर होने लगी,
मुझे चिन्ता होने लगी
कि क्या वह मुझसे
प्यार करती है या?
इतने में तीन दिन
बीत चुके थे,
मुझे वह
उसी चौराहे पर मिली,
उसने कुछ कहा नहीं
बस एक प्रेम पत्र (?)
थमा दिया मुझे
मैं बहुत खुश हुआ
झट से घर को आ गया
प्रेम पत्र को
खोला ...
उसमें लिखा था -
इश्क़ मुझसे मत लड़ाओ,प्लीज़।