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Shyam C Tudu

Children Stories

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Shyam C Tudu

Children Stories

मेरे कंधे पर झोला

मेरे कंधे पर झोला

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बैग नहीं था

मेरे कंधे पर

झोला था

एक हाथ में

दूसरे हाथ में

बोरा

जिसपर मैं बैठा था

उसे हम ’बोस्ता’ कहते थे


उस झोले में

किताब तो थी नहीं

कॉपी भी नहीं था

कलम भी नहीं

न ही पेंसिल था

था तो एक स्लेट

टिन की

एक चॉक

पत्थर की

और

एक छोटी से

कपड़े की टुकड़ी

जिसे भिंगोकर

स्लेट में लिखे गये

पुराने अक्षरों को

मिटाते थे

और फिर

नये अक्षरों को

लिखते थे

ये मेरी और हमारी

स्कूल की

दिनचर्या होती थी


हम स्लेट को ’सिलाट’

चॉक को ’खुड़ी’

और

कपड़े की टुकड़ी को

’गेंदराः’ कहते थे

आज भी

मेरे उस सुदूर गाँव के

बच्चे

उसी नाम को

देाहराते हैं।


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