दिल की बात
दिल की बात
लिखना चाहती हूं दिल की बात
जब छोड़ा था तुमने मेरा साथ
कितना रोई थी मैं
रातों को ना सोई थी
लेकिन तुम्हारे क्या फर्क पड़ता था
दिल तोड़ना तुम्हारे ऊपर खूब जँचता था
महफिल में बड़े गुनगुनाते थे
दिल पर मेरे छुरियाँ बड़ी चलाते थे
चाहते थे तुम कि मैं डर जाऊं
समुद्र की गहराई में डूब जाऊं
तुम्हारा यह सोचना बिल्कुल गलत था
समस्याओं से लड़ना अब मेरा मुकद्दर था
जाओ जाकर कहीं और दिल लगाओ
जान बूझकर मेरा दिल यूं ना जलाओ
रह लेंगे तेरे बिना अकेले
बहुत सह चुके तेरे ये झमेले
अब मैं मुस्कुराती हूं
तनहाइयों से अब ना मैं घबराती हूँ।
