क्या बात हुई है...
क्या बात हुई है...
नींद की ओस से पलकों को भिगोये कैसे,
जागना जिसका मुकद्दर हो वो सोये कैसे,
रेत दामन में हो या दश्त में बस रेत ही है,
रेत में फस्ल-ए-तमन्ना कोई बोये कैसे,
ये तो अच्छा है कोई पूछने वाला न रहा,
कैसे कुछ लोग मिले थे हमें खोये कैसे,
रूह का बोझ तो उठता नहीं दीवाने से,
जिस्म का बोझ मगर देखिये ढोये कैसे,
वरना सैलाब बहा ले गया होगा सब कुछ,
आँख की ज़ब्त की ताकीद है रोये कैसे।
कशिश तो बहुत है मेरे प्यार मैं भी
लेकिन कोई है पत्थर दिल जो पिघलता ही नहीं
अगर मिले खुदा तो माँगूँगा उसको
सुना है ख़ुदा मरने से पहले मिलता भी नहीं
जाने कब सुबह सुबह वो रिश्ता बन गया,
अनजाना जाने कब अपना बन गया.!
हमे एहसास भी ना हुआ ओर कोई,
हमारी सुबह की ज़रूरत बन गया..!!
