नूर हो...
नूर हो...
हमने खुशियों को जब जब पुकारा है,
एक ही नाम तो मन प्रांगण में उतारा है,
तब तेरा ही चेहरा मेरे मन ने उकेरा है,
मन को मन के रिश्तों का ही सहारा है...
जीवन में तृष्णाओंं ने ही डाला डेरा है,
तब तब मैंने एक तेरा ही नाम पुकारा है
उनींदी पलकों ने जब तुझे निहारा है,
प्रिय तब तब तेरा मिला मधुर सहारा है...
मधुशालाएं भी हो जाएं खाली,
कितनी मय तुम्हारी आँखों में डाली,
छू कर तुम्हारे लबों की लाली,
हवाएं भी हो गई देख मतवाली...
चंदन पर लिपटे भुजंग हो जैसे,
उलझे हैं तुम्हारे गेसू ऐसे,
न तुम हो सूरज की किरणें,
न किसी चाँद का नूर हो,
आंखें देख तुम्हारी सब मैं भूल गया,
बताओ किस नूर का तुम नूर हो...

