दिल की बात
दिल की बात
चुपचाप सी रहती है, ये दिल की बात,
ना कह सके किसी से, ना हो कोई सौगात।
लब थरथराते हैं, पर आवाज़ नहीं होती,
अंदर कुछ टूटता है, पर आवाज़ नहीं होती।
हर मुस्कान के पीछे, एक दर्द छुपा होता,
हर खुशी के चेहरे पर, कोई ग़म बसा होता।
कभी लगता है, कह दूं सबकुछ आज,
पर डरते हैं कि टूट न जाए कोई रिश्तों का ताज।
दिल चाहता है कोई समझे बिना कहे,
सुन ले वो सब, जो जुबां ना कह सके।
पर क्या करें, ये दुनिया तो हिसाब मांगती है,
ख़्वाबों में भी अब सच्चाई की किताब मांगती है।
फिर भी कहीं एक कोना, उम्मीद से भरा रहता है,
कि कोई तो होगा जो बस दिल की सुनेगा, ये दिल कहता है।
