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gyayak jain

Classics

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gyayak jain

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ऐसे भये जिन "महावीर"

ऐसे भये जिन "महावीर"

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एकांत में जो कांति उपजी,

स्रोत वह स्व-क्रांति का

निज सुधि लगी जब आत्म को,

स्वमेव क्षय भव भ्रांति का।


मिथ्यात्व रिपु को निर्मद किया,

शुद्धात्मा को जानकर

तजी सम्पदा षट्खण्ड की,

तृणसम निरर्थक मानकर।


ऐसे भये जिन "महावीर",

कैवल्यनिधि को पा लिया

"पावापुरी" की रज को पावन,

शिवपुर का मार्ग प्रदर्श किया।


जिनने जीता युद्ध विकट,

बिन हाथ असि-कृपाण लिये

वे हुए आप में आप लीन,

आलौकिक मार्ग प्रमाण दिये।


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