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gyayak jain

Tragedy Inspirational

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gyayak jain

Tragedy Inspirational

रात है छाई हुई इस धरा के छोर तक

रात है छाई हुई इस धरा के छोर तक

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रात है छाई हुई इस धरा के छोर तक

रोशनी की आस पहरा दे रही उस छोर पर।


हर आँख में है खौफ़, साँसे बिक रहीं हैं मोल जब

भाव शून्य हो शब्द कह रहे, मानवता अनमोल अब।


यह ज़ुल्म ढाया है गया, किस पर सदेंगी उँगलियाँ

ज़िम्मा उठाना था जिन्हें, उनकी जनाज़ों पर निकली रैलियाँ।


कुछ आस बची है अब भी लेकिन, अनजान मूक समूहों से

बूँद-बूँद से भरे कटोरे, बाँट रहे जो मानवता।


ऐसे ही मूक समूहों को, गर मिले सहारा हम सब का

लोकतंत्र के विजय गान को, फिर किसकी आवश्यकता।


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