तरक्की
तरक्की
अरे छोड़ो वो किस्से जो कभी अंजाम न होंगे
तरक्की से लदे इन पैरों पर कितना दूर तुम जाओगे।
कभी सोचा की मैं क्या कर सकूँगा बेहतरी से
या बचपन से ही चलता रहा तू, उन सलाहों के दम पे।
देख तो मस्तक उठाये, दहकते आफ़ताब को
मंजिल भी वही होगी, जो तरीके तुम बनाओगे।
उनके अलग से थे, हमारे भी अलग होंगे,
किसी के पैरों से चलके, कभी मैदान, पार नहीं होते।