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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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खुद के लिए नजरिया

खुद के लिए नजरिया

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मैं वो नही हूँ जो तुम सोचते हो

बल्कि मैं वो हूँ "जो मैंने विश्वास किया है।"

आज दुनिया की नकारात्मक बातों से कौन परेशान नही है। ऐसे में एक बेरोज़गार अभ्यर्थी का क्या हाल होता होगा उसे सोचकर ही बड़ा दर्द होता है। हालांकि सभी को जीवन मे आगे बढ़ने के दौरान लोगो की कुछ तीखी बातों से गुजरना ही होता है।

ऐसे में यह दो पंक्तियां हमारे लिये "दवा" का काम करेगी। अतः हम इनके अर्थ को समझने का प्रयास करते है।

प्रथम चरण में हम पहली पंक्ति के भाव को जानेंगे कि" मैं वो नही हूँ जो तुम सोचते हो":-

अर्थात हम सबका अपना एक वजूद है। सभी खास है अनोखे है। इसीलिये प्रत्येक व्यक्ति कि एक विशेष पहचान है, जो सबसे अलग है सबसे जुदा है। इसका अर्थ कतई यह नही है कि दूसरे हमसे कमतर है, बल्कि यह है कि दूसरे जितने खास है उतना ही खास एक मानव के रूप में मैं भी हूँ। (यहाँ मैं = खुद से लिंक कीजियेगा)

साथियों प्रत्येक व्यक्ति इस सत्य से परिचित नही होता है। बल्कि खुद के प्रति इस अज्ञान के कारण वे दुनिया के बनाये गए मानकों से खुद को तोलने लग जाते है।

जिससे उन्हें निराश जीवन जीना पड़ता है,

हमारे आस पास भी कहीं ऐसी मानसिकता हो सकती है। जो आपको जज करती है या "पूर्वधारणा" बना लेती है, और वही आप पर थोप देती है।

ex:- मान लीजिये आप RAS बनना चाहते है या किसी अपने बड़े लक्ष्य को पाना चाहते है, तो निम्न कोटि की मानसिकता आपको कई तरह से Demoralize कर सकती है जैसे:-

आपके बड़े सपने सुनकर वे उनका मज़ाक उड़ाएंगे, कि शक्ल देखी है अपनी ये बनेंगे RAS

इसी तरह कोई आपको कह देगा, कि तेरे

जैसे बहुत देखे है हमनें । कुछ न हो पायेगा तुमसे

या फिर सुनने को मिलेगा कि यार तू उस टाइप का नही है, वो करने वाले तो अलग ही होते है या फिर छोड़ो यार तुम्हारी औकात नही है कुछ बड़ा करने की etc

साथियों इस तरह की न जाने कितनी बातें हमें इसी लहज़े में सुनने को मिलती है । और जो ऐसा कहते है उनके लिये तो यह बात कुछ भी नही होती, लेकिन जिसके लिये कही जाती है। उस पर क्या बीतती है उस पीड़ा को लिखना सम्भव नही

इन सभी कथनों को यदि ध्यान से देखें तो एक भी विचार सहजता से उत्साह बढ़ाने वाला नही है बल्कि सब हौंसले को तोड़ने वाले है। अतः क्या ऐसे विचारों को सत्य मानकर हम टूट जायेगें, जबकि यह तो वास्तविकता नही है हमारी ?

इस प्रश्न का उत्तर हमें स्वयं को देना होगा। अब हम इसके दूसरे चरण पर चलते है

"कि मैं वो हूँ, जो मैंने विश्वास किया है..."

अर्थात साथियों दुसरे लोगो की पूर्वधारणा, उनके कमेंट्स, पीठ पीछे की गई बुराई या हमारे प्रति भद्दी टिप्पणियां

ये सब उनके दृष्टिकोण को बताती है, जो कि वे हमारे प्रति रखते है। न कि यह हमारा दृष्टिकोण है हमारे प्रति

इस अंतर को बहुत ध्यान से समझना है हमें

उदाहरण के लिये कोई यदि हमें निकम्मा समझता है, तो वह उसका विचार है हमारा नही। हम तो खुद को कर्मयोगी मानेंगे

किसी की नज़र में हम नज़रअंदाज़ करने योग्य है तो क्या हुआ हम खुद को बेनज़ीर(अतुलनीय) समझकर जीयेंगे

कोई हमें पागल,अनाड़ी समझेगा तो क्या। हम स्वयम को अपने फील्ड का बेस्ट खिलाड़ी मानकर बढ़ेंगे

प्यारे भाई प्यारी बहन हमें ऐसा करना ही होगा क्यूँकि हम दूसरो की थोपी गयी नेगेटिव इमेज को अपने ऊपर लादकर अपने मासूम सपनों से गद्दारी नही कर सकते,

जब भी जीवन मे इस तरह की मानसिकता से सामना हो जाये तब मन मे

ख़ुद से एक सवाल ज़रूर पूछे कि

जिस व्यक्ति को मेरे सँघर्ष का "स" भी न पता हो, जिसे मेरे मासूम सपनो का "म" भी न पता हो । क्या उस व्यक्ति की demoralize करने वाली किसी भी बात पर मेरा 1 मिनट भी विचार करना, मेरे 60 सेकंड के साथ अन्याय नही ?

इस प्रश्न का उत्तर ही आपकी clarity है

जब आप इसे पा लेंगे। तब आपको कोई नही रोक सकता । न आज न कल। क्यूँकि यह स्पष्टता बहुत बड़ी ताकत है, और हमें सदैव इस बात को लेकर पूरी तरह क्लियर रहना चाहिये कि हमारा जीवन कभी भी इस पर निर्भर नही है कि दूसरे लोग हमारे बारे में क्या सोचते है बल्कि यह इससे प्रभावित होता है कि हम खुद के बारे में कैसा सोचते है...

अपनी बाहरी दृष्टि से किसी की आंतरिक क्षमताओं का अनुमान लगाने वाले अक्सर चूक कर देते है।


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