वह पल
वह पल
एक पल जो ठहरा बर्फ की चादर सा......
स्पर्श किया जब हथेली से तो लगा धुंधला का..
उस पल में हजारों मासूमियत है छुपी सी....
तासीर उसकी पिघल रही जमी जमी सी..
वह कतरा कतरा बर्फ की सिल्लियों पर मिसाल बनता रहा
बन आंसू आंँखों से पल-पल ढलता रहा..
जम रहे थे सख्त दीवार से वो सरहदों पर..
कर दुश्मनों पर वार ..नमन वसुंधरा को करता रहा..
सहता रहा हर मौसम की मार वो..
सर्द वादियों में ऊंँचे हठीले पहाड़ सा वो..
बन बर्फ सा रहा ..करता वतन पर जान निसार ..
यादें कुछ ऐसी जेहन में उनकी जमीं....
हवा का झोंका भी पिघलने से करती इनकार..
वह दर्द पराकाष्ठा.. जो जल पड़ी आग बनकर..
वह वीर सपूतों की कहानी फलसफा बयां करेगा..
नम आंखों से गिरता आंँसू जब बर्फ सा जमेगा..
बन जाएंँगे वह पाषाण शिला से शहीदों में शामिल होकर..
उष्णता कब पिघलेगी ..बनेगा प्रश्न जब मौन बनकर..
आने का इंतजार जब एक पल युग बनते हैं..
जमी हुई बर्फ पर आंँसू तैर बन ठहरते हैं।