याद
याद
यादों के झरोखे से जब झांँका
जे़हन में उभरा स्नेह का वो खाका
आंँखों में भर आए प्यार के आंँसू
थी जो बृहद परिवार की मांँ सासु
हर कदम पर सुंदर सीख देना
गलतियों को मेरी अपने आंँचल में छुपा लेना
बच्चों पर वह छत्रछाया प्यार के फ़ुहारों की
आशीष बन कर आज हैं शीश पर बौछारों की
मजबूत डोर सी होती है यह जिंदगी
धोखा देकर कर जाती है बंदगी
काश! उनके हिस्से में कुछ और दिन होते
बैठकर साथ उनके थोड़ा और खिलखिला लेते
आज हाथों के कंगन उनकी याद दिलाते हैं
स्मरण के वो पल याद बनकर आज मुस्कुराते हैं।