मैं गुलाब
मैं गुलाब
चटकीला लाल सुर्ख हूंँ..
भीनी-भीनी सुगंध में हूंँ..
पहचान है मेरी ख़ामोशी..
स्वर्ण किरणों सी रहती
मुझ पर मदहोशी...
हांँ मैं गुलाब हूंँ.........
मैं अनवरत कांँटो से घिरता हूंँ..
जिंदगी जीने को पल-पल ढूंँढता हूंँ....
अस्तित्व में अपने बादशाह जिंदा हूंँ....
संघर्ष का मुस्कुराता वह परिंदा हूंँ....
हांँ मैं गुलाब हूंँ........
आलिंगन करती मुझसे तितलियांँ....
दिलकश सी झूमती वो ख़ुमारियांँ.....
हर शाख़ पर बन कली ताज हूंँ...
इत्र सा महकता अपने आप में बख़ूबी ख़ास हूंँ..
हांँ मैं गुलाब हूंँ...........
किसी के दामन में गिरकर चमक उठता हूंँ
मोहब्बत के पलों में 'श्री' चमन सा खिल उठता हूंँ..
जिंदगी में किसी के 'नूर-ए-इश्क' सा महक उठता हूंँ..
सींचता जब कोई तसव्वुर में मुझे..
तमन्ना- ए-महताब सा दिल में ताउम्र बस उठता हूंँ..
हांँ मैं गुलाब हूंँ..............