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Sri Sri Mishra

Classics

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Sri Sri Mishra

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जज्बात

जज्बात

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जब तू है पूर्णता से रुक्मणी का...

तो राधा से क्यों जुड़ा है...!!!

तेरा वास है अनवरत प्रेम में..

तो तू जटिल कुरुक्षेत्र में क्यों अड़ा है..!!!

है जब तू नरेश द्वारिकाधीश..

तो तू बन सारथी रथ पर क्यों खड़ा है..!!!

जब है तू हज़ार प्रकाशों सा चमकता

तो तू अंँधेरे के सायों के ज़र्रे में क्यों छिड़ा है..!!!

एक क्षण के लिए बना दिया तूने सबको पाषाण

पार्थ के लिए अपने तू मोम सा क्यों पिघल गया..!!!

हृदय में छा रहा था जब विस्मय

सुदामा का बन मित्र तू मिसाल बन गया..

हांँ हांँ बांँध मुझे तू दुर्योधन जंजीरों से.. कह कर..

गगन लय विस्तार रूप करने को..

अन्यायियों से करने को न्याय तू हुंकार भर गया..!!!

अमरत्व में कुछ सकल झंकार फल फूल रहा था..

भूमंडल वक्षस्थल पर बन दीप्त भाल..

ग्रह नक्षत्र सा तू हर पल विचर रहा था..!!!

छुपाकर अंधेरों में अपने अस्तित्व को.. हे जनार्दन..तू..!!

उस युग का असत्य पर सत्य का मार्ग प्रशस्त कर रहा था।



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