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Krishna Bansal

Abstract Classics Inspirational

4.2  

Krishna Bansal

Abstract Classics Inspirational

आ बैठ, विश्राम कर

आ बैठ, विश्राम कर

1 min
330


बहुत हो गया,

ज़िन्दगी की आपाधापी में 

तू न जाने कहां खो गया 

आ बैठ, थोड़ी देर, 

विश्राम कर।


ज़िन्दगी तो अपनी गति से 

चल रही थी, 

तुमने ही दौड़ लगा दी।

प्राय: सुना जाता है 

मुझे यह सीढ़ी चढ़ना है, 


वह सीढ़ी चढ़ना है, 

सब कार्यों के लिए समय है 

नहीं है केवल 

आराम के लिए।

आ बैठ, थोड़ी देर, 

विश्राम कर।


जोड़ लिया पैसा बहुतेरा, 

काफी है कई पुश्तों के लिए। 

अब बारी है सोचने की, 

अपने बारे में

स्वास्थ्य और शौक के बारे में,

बिखरे रिश्तों के बारे में।

आ बैठ, थोड़ी देर, 

विश्राम कर।


तनाव किस बात का है।

न जन्म तुम्हारे हाथ में 

न मृत्यु, 

बस, जन्म से मृत्यु तक का 

समय तुम्हारा अपना है 

वह भी कई उलझनों भरा

इसे ही ढंग से गुज़ार ले। 

आ बैठ, थोड़ी देर, 

विश्राम कर।


जो घट रहा है 

वह तुम्हारे कारण नहीं है 

जो नहीं घट रहा 

वह भी तुम्हारे कारण नहीं है 

फिर चिन्ता क्यों? 

प्रकृति में, रिश्तो में,

समस्याओं में

साक्षी बन, आन्नद ले।

आ बैठ, थोड़ी देर,

विश्राम कर।


बहुत हो गया,

जिंदगी की आपाधापी में 

तू न जाने कहां खो गया 

आ बैठ, थोड़ी देर, 

विश्राम कर।


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