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Krishna Bansal

Abstract Classics Inspirational

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Krishna Bansal

Abstract Classics Inspirational

पेन्सिल

पेन्सिल

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मैं एक साधारण सी वस्तु  

पेन्सिल है नाम मेरा

लिखना है काम मेरा।


कहने को मैं सीधी सादी पर

पूरा जीवन है दार्शनिक मेरा।


समझती मैं हूं 

स्वयं को कर्त्ता

हूं नहीं 

मैं वही लिख पाती हूं जो 

कोई हाथ मुझे से लिखवाता है

यानि हर आदमी के पीछे ईश्वरीय हाथ है।


जब मैं लिखते लिखते

थकने लगती हूं 

आसियाना से तराशी जाती हूं

एक बार फिर लिखने को 

तत्पर हो जाती हूं।

आपके जीवन में कष्ट भी 

आपको तराशते ही तो हैं

नए सिरे से खड़े होने के लिए।


मुझ से कुछ ग़लत लिखा जाए 

है न रबड़ मिटाने को।

नई इबारत लिखने के लिए,

यह नहीं कि कोई ग़लती हो गई 

उसे सुधारा न जा सके।


बाहर से मैं लकड़ी का 

ढांचा जिसकी कोई 

अहमियत नहीं

अहमियत है केवल 

अन्दूरुनी सिक्के की।

हर मानव में भी वही 

परम सत्ता है विराजमान। 


मुझ से जो कुछ भी 

लिखवाया जाता

एक निशान छोड़ती

तुम भी 

ऐसे काम करो

दूसरों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन सको

दूसरे तुम्हारे कदमों के निशान पर चलें।


मैं एक साधारण सी वस्तु  

पेन्सिल है नाम मेरा

लिखना है काम मेरा।


पाउलो कोइल्हो की एक कहानी 

'स्टोरी ऑफ़ अ पेंसिल'

पर आधारित।


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