श्रीराम जय राम जय जय राम
श्रीराम जय राम जय जय राम


प्रभु की कृपा है सदा साथ में।
सौंपा है खुद को प्रभु हाथ में।
विकारों के बंधन अछूते हुए।
रचें हैं बसे हैं परमधाम में।
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दिव्य दृष्टि की छैय्या में चलने लगे।
परिमार्जित स्वयं ही हम होने लगे।
विश्व की शून्यता को समझने लगे।
फल की चाहत से निवृत्त होने लगे।
तत्व दृष्टि को अनुभव में पाने लगे।
तपस्या की राहें समझने लगे।
रखी है निष्ठा जो रघुनाथ पर।
आशीष रहा है सदा माथ पर।
भलाई के जब हम अनुगामी हुए।
स्वयं ही परमधाम दिखने लगे।
भटकते रहे कब तलक यूँ ही हम।
शरण में जो आए गति मिल गई।
श्रद्धा से बुद्धि विवेकित हुई।
आचरण में जो भक्ति समाहित हुई।
प्रभु में प्रीति असीमित दिखने लगी।
ज्ञान की भोर जागृत करने लगी।
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स्याह इस संसार में राम कृपा अथाह है।
राम की चाह है राम का प्रवाह है।
सेवा में रमे रहे भक्ति की क्या थाह है।
सत्कर्मों की कुंजी से ही खुलते मोक्ष द्वार है।
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सत्कर्मों से सजाया है मोक्ष मार्ग को।
मन में बसाया है प्रभु राम को।
पल-पल मधुरता का संज्ञान है।
राम की चाह है सत्य का ज्ञान है।
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तंद्रा त्यागो उठो ध्यान से
चेतन अपना मन कर डालो।
कृपा जो बरसी प्रभु राम की
अमृत छींटे स्वयं पर डालो।
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मार्गदर्शक प्रभु श्री राम बने जब।
विचलित मन स्थितप्रज्ञ बने तब।
प्रभु को अपना गुरु बना लो।
चेतन अपनी प्रज्ञा बना लो।
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संयम नियम चित्त पवित्र बने जब।
शुभ कर्मों की श्रृंखला बने तब।
सही सोच हो सही बोल हो।
बारंबार यह दृष्टि बना लो।
मर्यादा का पाठ पढ़कर,
सम्यक दर्शन सम्यक दृष्टि बना लो।
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समग्रता की छटा जो बिखरी।
संपन्नता की चमक है निखरी।
कर्म योग की अनंत गहराई।
अनंत जिनकी प्रेरित परछाई।
अनंत जिनके नाम, अनंत राजाराम।
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सद्भाव का लेप लगाते,
अंतर्मन झंकृत कर जाते।
आदर्श किये कई स्थापित
कर आत्मा को स्पर्श ,
करुणा को तरंगित कर जाते।
कर्तव्य बोध से कर्म योग सिखाते।
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किया जब-जब आत्मा से प्रणाम है।
नव चेतना का उद्गम आत्मीयता प्रमाण है।