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Akanksha Gupta (Vedantika)

Abstract

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Akanksha Gupta (Vedantika)

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वो सपने गुज़र गए

वो सपने गुज़र गए

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वो सपने गुज़र गए इन आँखों में कुछ इस तरह

हर ख़्वाहिश इस दिल की बेमानी लगने लगी है


जो हुए थे मुकम्मल तेरी एक मुस्कुराहट के साथ

अब बनकर अश्क़ ज़िंदगी आँखों से बहने लगी है


उन सपनो में हुआ करता था तेरा चेहरा कभी तो

तू नहीं इन ख़्वाबों में तो मेरी साँसें थमने लगी है


गुज़र गया वो वक़्त या एक उम्र गुज़र गई जो

अब ज़िंदगी फिर से अपना मुकाम ढूँढने लगी है


पस्पाई हो गए हम तो तहाय्युर क्यों हो रही हैं

तन्हाइयों की महफ़िल अब तो सजने लगी है.


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