मिलन का रंग
मिलन का रंग


मिलन का रंग तेरी बाहों में गहराने लगा है।
नशा तेरी मोहब्बत का मुझपर छाने लगा है।
जब से डूबे हुए हैं तेरी आँखों के दरिया में,
तब से इन साँसों का होश भी जाने लगा है।
बिक चुके चाहत के बाज़ार में दिल हज़ारों,
मजा आशिक़ी में सभी को आने लगा है।
ओढ़ कर चादर-ए-महताब तुम हो आये,
चाँद फ़लक़ पर तुझे देख शरमाने लगा है।
ज़ख़्म मिले थे हर रिश्ते में हमकों क़भी
लफ़्ज़ों का मरहम निशां मिटाने लगा है।
खुशियों का कारवां निकला जो मेरे घर से,
होकर राख ज़माना अब अश्क़ बहाने लगा है।
रंग ये मिलन का ही है ज़रख़ेज़ ज़िंदगी का,
दिल की धड़कन को वक़्त समझाने लगा हैं।
उतरती नहीं सिर से इश्क़ की खुमारी अब तो,
दिलबर जब से मेरे साथ वक्त बिताने लगा है।