नसीब में नहीं था
नसीब में नहीं था


नसीब में नहीं था एक मुकम्मल जहान
पैरों तले जमीन और सिर पर आसमान
मुंतशिर हर ख़्वाब आँखों की चुभन है
मुतमईन ज़िंदगी नहीं लेती है इम्तिहान
बूंदों की ख़्वाहिश में प्यासे रहे उम्र भर
बादलों को रहा खुद पे दरिया सा गुमान
लड़ने चले थे नसीब से हम एक दिन
इस अंजाम-ए अदावत से हो अंजान
जीत हासिल करके भी हार गया दिल
बिक गया बाज़ार में इश्क़ का सामान
शकेबाई की हद नहीं रह गई अब कोई
ग़मगुसार नही है यहाँ मेरा कोई इंसान।