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आजादी

आजादी

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कैसी आजादी है ये कैसा ये मंजर आया है,

हर गली चौराहे पर एक नया फसादी आया है।


देश द्रोह के नारे लगते केशर की उन क्यारी में,

देश का सीना चलनी होता संसद की दिवारो मे।


माओवादी,नक्सलवादी, का रोज नया आघात हुआ,

पुरा भारत देश हमारा जलियाँ वाला बाग़ हुआ।


कैसी आजादी है ये कैसा ये मंजर आया है,

हर गली चौराहे पर एक नया फसादी आया है।


ब्लात्कार की खबरों से आंगन मे दहशत फैली है,

आरक्षण के झगडो से सड़के खुन से मैली है।


सीमाओ पर शिश कटे है भारत माँ के बेटो के,

फिर भी उनके हाथ बंधे है दिल्ली के आदेशों से।


ह्त्या के आरोपी सारे नेता बन कर बैठ गये,

जिनको जेलो में होना था,संसद में जाकर बैठ गये।


कैसी आजादी है ये,कैसा ये मंजर आया है,

हर गली चौराहे पर एक नया फसादी आया है।


किसानो की आँखे तरसे दो वक्त की रोटी को,

नन्हे बच्चे कचरा बीनते फटे कपडे बदलने को।


कतरा कतरा संविधान का रोज यहाँ मर जाता है,

कुछ लोगो को देश हमारा असहीष्णू लग जाता है।


मन्दिर मज्जिद की टक्कर में भाईचारा हार गया,

भगत सिंह की फांसी का फंदा फुट फुट कर रो गया।


कैसी आजादी है ये,कैसा ये मंजर आया है,

हर गली चौराहे पर एक नया फसादी आया है।


न्याय व्यव्स्था को हमने बच्चो का खेल बना डाला,

चोर, उच्चकों, बदमाशों को सत्ताधारी बना डाला।


श्री राम, कृष्ण और महावीर की परिपाठी हम भूल गये,

टी.वी. मोबाइल के चक्कर में हिन्द संस्कृति भूल गये।


गाय को माता कहते और पथ्थर भी पूजे जाते हैं,

मगर गरिब के बच्चे देखो भूखे ही सो जाते हैं।


कैसी आजादी है ये, कैसा ये मंजर आया है,

हर गली चौराहे पर एक नया फसादी आया है।


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