एक मां का दर्द
एक मां का दर्द
डरती हूँ मैं बेटी के इस सवाल से
माँ, मैं क्यों नहीं घूम सकती आजाद
भाई के समान आधी रात तक।
कैसे समझाऊँ मैं बेटी को
क्यों चिंतित रहती हूँ तुझे लेकर
पढाया-लिखाया मैंने तुझे
भाई के बराबर ही।
लाड़ में किंचित अंतर
कभी किया नहीं
फर्क नहीं मेरी निगाहों में
दोनों ही तारे हो मेरी आंखों के।
पर आधी रात का फर्क है पिशाचों से
जो घूमते यत्र-तत्र सर्वत्र जहां तहां
भेड़ियों पर बेटी मेरा वश कहाँ।
जैसे- तैसे मनाती हूँ मैं बेटी को
कि आवाजें शुरू हो जाती हैं
मेरे खिलाफ भी
यह षड़यंत्र है, जुल्म है
बेटियों के संग।
क्यों नहीं छोड़ती उन्हें स्वतंत्र तुम
डर कर कांपती हूं मैं
सोचती हूँ कि कहीं यह
उनकी ही आवाजें तो नहीं
जो ताक में खड़े हैं
रास्तों के संग आधी रात में।
डराती है मुझे यह स्वीकोरक्ती भी
जो कहती है सरेआम टीवी पर
हाँ, होती है यहाँ कास्टिंग काऊच
सफलता की कीमत है यह।
डर जाती हूँ मैं कि यही लोग
उठाते हैं सबसे बुलंदी से आवाज
बनते हैं नारी-स्वतंत्रता के
अलम बरदार।
कि आओ, और कास्टिंग काउच की
कीमत पर सफलता ले जाओ
ये रोज के अखबार भी मुझे डराते हैं।
मुझे अच्छा लगता है जब,
भाई कहता है बहन से
तू रहने दे,
कहाँ जायेगी इतनी रात गये
बोल क्या चाहिए, मैं लाता हूँ।
पिता कहता है कि बेटी
संग चलता हूँ मैं तेरे दूसरे शहर में
परीक्षा में कांपटीशन में
रहूँगा मैं साथ तेरे।
करती नहीं मैं कोई सवाल
जब कहते हैं पति मेरे कि यार,
तुम गाऊन में न आया करो
मेरे दोस्तों के सामने।
लड़ती नहीं मैं उनसे,
मानती हूँ उनकी बात
मुझे यकीन है कि वो
मुझसे बेहतर जानते हैं
अपने दोस्तों को।
कैसे समझाऊँ मैं
अपनी बेटी को
कि फर्क मेरी नजर में नहीं ?
डर है उनसे,
जो बरगलाते हैं तुझे
जो तेरी स्वछंच्दता की माँग को
स्वतंत्रता का नाम देते हैं।
मेरी नजर में तू कभी
बंधन में नहीं
उड़ वहां तक जहां
आग जलती है नहीं
बस, बनकर रहूँ मैं
सुरक्षा की छाया।
बेटी, तू जान है मेरी
पढे-बढे तू आसमानों तक
एवरेस्ट हो तेरे कदमों के तले
सारी दुनिया तू जीत ले।
बस, डर है मुझे सिर्फ इतना
तेरी हिफाजत हो हर कहीं
यह बंधन नहीं
बेटी सुरक्षा कवच है
जो सुरक्षित रखें तुझे हर कहीं।