विरहणी के प्रतीक्षारत नयन
विरहणी के प्रतीक्षारत नयन
कुमुद के प्रभामण्डल की आभा है बढ़ रही,
प्रज्ञान से मिलन की बेला है निकट खड़ी !
घूम रहा अभी विक्रम चंदा को लुभाने में,
जानता है विरहणी के प्रतिक्षारत नयन को !
सदियों से सजाया है शशि को अपने भाल पर,
आज वह कसमसा रही नेह सुधा बरसात को !
सप्तर्षियों का आशीर्वाद अब फलित होगा,
विक्रम चंदा का जब अतुल पावन मिलन होगा !
भारत की धरा का वह सर्वोत्कृष्ट समय होगा,
अध्यात्म विज्ञान का जब शिखर सम्मेलन होगा !
बिखरती ज्योत्सना का प्रभामंडल घना होगा,
हिमालय के गंगाजल का चंदा पर सिंचन होगा !