" भ्रम "
" भ्रम "


अपूर्णता में संपूर्णता का,
जब होता है भान !
तब आशाओं...आकांक्षाओं पर,
लगता है पूर्ण विराम !
समय की गति अनंत अबोध,
सतत् निरंतर प्रवाहमान !
कभी तेरी...कभी मेरी,
कहानीयों का अबध्य संसार !
हर कालखंड देता है प्रमाण,
कभी संपूर्ण कोई हुआ नहीं !
संपूर्णता है निरी मृगतृष्णा,
अपूर्णता में समायी जीवन तृष्णा !
मिथ्थाओं के भ्रमरजाल से,
कभी कोई निकला नहीं !
साधु हो या संत कहीं का,
मोक्ष किसी को मिला नहीं !
फैला हुआ है सर्वत्र सकल,
मिथ्था भ्रमों का जाल !
सब पर विजयी होकर भी
यहीं हारा है काल !