वक्त
वक्त
खाकर चन्द ठोकरों को जो जाता है संभल,
समझ कर वक्त के सांचे को
हो जाता है सफल।
बुरा, भला करो सोच समझ कर,
अपने किये का खुद ही मिलता है फल।
पहले की तरह अब नहीं रही बहारें,
माली भी बदल चुका है
बदल गई हैं यादगारें।
धोखे फरेब खूब फल रहे हैं
किस पर यकीन करें, बागवां
भी नित तोड़ कलियों को देता
खुद ही मसल।
रहता है हर कोई खोया खोया,
मदहोश है उसकी नजर,
लगता है जिन्दा हैं ख्वाब
अभी पर खो दिए हैं पल।
प्रेम क्या होता है नहीं पता
फिर भी शौक से हर कोई
गाता है प्यार की गजल।
नजर में कुछ ओर है दिल की नहीं खबर,
खुद बन बैठा है मजनु,
लैला हो रही दर वदर।
झूठे बायदे, झूठी कसमें
खा खा कर बनते हैं असल
चेहरे लगे है नकाब हर किसी के,
नहीं सच्चे लोग सुदर्शन नहीं सच्चे दल।