एक कम पचास
एक कम पचास
होने जा रही हूँ
एक कम पचास
क्या कुछ बदल
गए हैं मेरे एहसास।
बचपन अभी भी
कहीं दबा है
दिल के कोने में
अलहड़पन आज भी
शायद कहीं जगा है।
पर जाता वक़्त
कुछ तो छल गया है
कुछ कुछ तो बदल गया है
समय की पाबंदियाँ
कुछ कम हो चली हैं।
अब कुछ फुरसतें
सी मुझको मिलने लगी हैं
ज़िम्मेदारीयो के बोझ तले
दबे हुए कई शौक़,
ज़रूरतों के जाल में
उलझी हुई कुछ चाहतें
अब फिर से जगने लगी हैं।
कुछ आज़ाद सा
महसूस होता है जब
नुक्कड़ पर खड़ी भीड़
देख कर डर सा नहीं लगता,
कोई सीटी नहीं बजती
कोई फबती नहीं कसता
दुपट्टा समेटे हुए
पाओं दबा कर चुपके से
अब कही से निकलना नहीं पड़ता।
दोस्तों की सोहबत
थोड़ी मस्ती की मोहलत
अब दोबारा मिलने लगी है
खिल खिला कर हँसने पर
अब कोई टोकता नहीं है,
मनपसंद गाने पर अब
थिरक लेती हूँ बेझिझक
कोई अब मुझे रोकता नहीं है।
बच्चों की याद अब
कुछ कम सताने लगी है
हमसफ़र के साथ की
अहमियत नज़र आने लगी है।
कुछ ठहराव भी आ गया है
दौड़ती भागती हुई ज़िंदगी
अब कुछ थमने सी लगी है।
बालों की चाँदी पर तो
कोटिंग हो गयी है रंग की
पर चेहरे की रंगत
अब कुछ हो चली है फीकी।
तजुर्बों की खिंची हुई लकीरें
एक अजब सा ताना बाना हैं बुनती
फिर भी जब आइने में देखूँ
तो पहले से ज्यादा
ख़ूबसूरत महसूस हूँ करती।
एक आत्मविश्वास का नूर
लिए सुदृढ़ सफल नारी
की छवि जब मुझे है दिखती !