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Sonal Bhatia Randhawa

Abstract

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Sonal Bhatia Randhawa

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नन्ही नन्ही ख्वाहिशें....

नन्ही नन्ही ख्वाहिशें....

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आसमान सी बेपनाह नहीं हैं 

ख्वाहिशें मेरी

बस नन्ही नन्ही 

रेत पर पानी की बूंदों सी,

हवा में दूर तक उड़ते 

पानी के बुलबुलों सी,

छोटी छोटी बातों में छुपी 

मासूम खुशियों सी,

मसरूफ ज़िन्दगी में 

सुकून के कुछ पल तलाशती,

टूटते बंधते रिश्तों को 

कहीं डोर से बांधती

पर ना जाने क्यों कब कहाँ

यह रेत की बूँदें दब जाती हैं

पाबंदियों के पैरों तले,

बंदिशों की खाक में 

नुमायां हो जाते हैं

वह उड़ते पानी के बुलबुले

रोज़मर्रा की दौड़ में पीछे छूट जाती 

वह मासूम खुशियाँ,

न चाहते हुए भी टूट जाती हैं

रिश्तों की नाज़ुक डोरियां

सुकून के पल ढूंढती रह जाती

भागते वक़्त के साथ चलने की मजबूरीयां।



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