पौधे की यात्रा
पौधे की यात्रा
बिछङ के माँ से एक दिन
अपना सर्वस्व गंवाया होगा
गिरकर ज़मी पर अपना पोंकल छुड़ाया होगा
अपना अस्तित्व दुश्मनों से स्वयं ही बचाया होगा
चीर धरती का सीना एक दिन
अपना पहचान बनाया होगा
देख इस खूबसूरत दुनिया को उस दिन
मंद- मंद मुस्काया होगा
फिर एक दिन पवन का एक झोंका
जङ सहित उसे झरोखा होगा
उस दिन पवन ने एक संदेश सुनायी होगी
हुआ बङा ना अभी याद दिलायी होगी
देख पवन की बेरूखी
मन को ढाढस दिलाया होगा
हो जाऊँगा इतना बड़ा मैं एक दिन
डिगा सके ना कोई जरा भी
ऐसा संकल्प बुनाया होगा
फिर एक दिन ऐसा आया होगा
फल उसमें भी लहलहाया होगा
देकर छाँव और अपना फल जगत को
अपना गुणगान सर्वत्र कराया होगा ।