STORYMIRROR

Manish Yadav

Abstract

4  

Manish Yadav

Abstract

पौधे की यात्रा

पौधे की यात्रा

1 min
188


बिछङ के माँ से एक दिन 

अपना सर्वस्व गंवाया होगा 

गिरकर ज़मी पर अपना पोंकल छुड़ाया होगा 

अपना अस्तित्व दुश्मनों से स्वयं ही बचाया होगा 


चीर धरती का सीना एक दिन 

अपना पहचान बनाया होगा 

देख इस खूबसूरत दुनिया को उस दिन 

मंद- मंद मुस्काया होगा 


फिर एक दिन पवन का एक झोंका 

जङ सहित उसे झरोखा होगा 

उस दिन पवन ने एक संदेश सुनायी होगी 

हुआ बङा ना अभी याद दिलायी होगी 


देख पवन की बेरूखी 

मन को ढाढस दिलाया होगा 

हो जाऊँगा इतना बड़ा मैं एक दिन 

डिगा सके ना कोई जरा भी 

ऐसा संकल्प बुनाया होगा

 

फिर एक दिन ऐसा आया  होगा 

फल उसमें भी लहलहाया होगा 

देकर छाँव और अपना फल जगत को 

अपना गुणगान सर्वत्र कराया होगा ।

    

    

      



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract