मानवता
मानवता
है कौन सही कौन गलत
वक्त का सब खेल है
निरंतर चलते जा रहा
समय का ये रेल है
होकर भी बदनाम शहर में
नाम तो बरकार है
बुरा ही सही
पहचान तो जोरदार है
रास्ते का विचार किसे
बस मंज़िल का परवाह है
चाहे गलत ही सही
पहचान तो पहचान है
इंसानियत का इल्म किसे
बस अपने तक संसार है
इंसानियत छोड़ सब मिल जाता यहाँ
धोखे का बाजार है
सबको फ़िकर है केवल अपना
बस पूरा हो अपना ही सपना
इस हेतु कुर्बान सभी
चाहे पराया हो या अपना
वैसा नहीं है ये लोगों का विकास
नहीं चाहते हैं
पर गड्ढे खोदना और इमारत बनाना
इसी को विकास का नाम देते हैं
मानवमूल्यों को सिर्फ़ पैसों का धूल समझते हैं
इसीलिए तो बच्चों को ज्ञान भी पैसों
वाली ही देते हैं
उन्हें न संस्कार , न कल्याण और न ही
पहचान का मूल्य बतलाते हैं
बस पैसा, चाहे छल से ही सही यहि
मंत्र सिखलाते हैं
और आश्चर्य, इसका आरंभ माँ- बाप
ही कर जाते हैं
अंत समय में इसका परिणाम को
जब समक्ष पाते हैं
हो अकेले बहुत पछताते हैं
है कुछ ही लोग जगत में
जो मानवता का पक्ष ले पाते हैं
लेकिन दुर्भाग्य वैसे मनुज का
जो होकर अकेले रह जाते हैं।
