खुशियों का सबेरा
खुशियों का सबेरा
जब जब तुमसे दूर जाने का अहसास हुआ
गम के बादल छा जाने का आभास हुआ
बेमौसम ही आँखों से बरसात हुआ
भीग रहा था तन-बदन इस बेवक्त
के बारिश में
तब तन्हा हो जाने का एहसास हुआ
तन्हाई के आलम में ,
कड़कती बिजलियों के झनझनाहट में
दिल बड़ा बेचैन हुआ
भाग रहा था इधर- उधर
अपनी यादों के उन्मादों में ,
किसी को रोक लेने के फरियादों में
पर किस्मत को कुछ और
ही मंजूर हुआ
मिला ही नहीं ' वो '
जिसे ढूंढने को इतना मजबूर हुआ
जब रो रहा था मन बेताबी में
सहसा एक मंजर का खयाल हुआ
तू अकेला नहीं जो तेरे साथ हुआ
दुनिया में ऐसा ही होता है
कोई अपनों के, कोई सपनों के
तो कोई किस्मतों का मारा होता है
बेवजह ही तू रोता है
आने वाले एक नए पल को
क्यों खोता है
उल्लुओं के आँख मूंदने से
रात हो जाती कहाँ
अंधकार छा जाने से प्रकाश
मिट जाती कहाँ
सब्र कर , अंधेरा स्वयं ही मिट जाएगा
खुशियों का सबेरा तुझे भी दिख जाएगा ।।