था तो वो अजनबी..
था तो वो अजनबी..
था तो वो अजनबी, लेकिन अपना हो गया
संग उसके रहना बस यही सपना हो गया
मुस्करा मुस्करा कर अक्सर उसे देखते रहे
मिलेगा कैसे हमें वो अक्सर यही सोचते रहे
मंजिल ने ढूँढ़ा है कभी कभी मुसाफ़िर को
एक दूसरे से मिल ही गये हम आख़िर को
हक़ीक़त ज़िंदगी की यहाँ से शुरू हुई सच्ची
मोहब्बत ख़्वाबों की होने लगी कच्ची पक्की
अब सिर्फ़ खिदमतें लेना ही फ़र्ज़ सा हो गया
मोहब्बत तो दूर बात करना कर्ज़ सा हो गया
एक घुटन भरी छांव कभी राहत ना दे सकी
भुला दिया सब ख़ुद की ख़ुशी बाकी ना रखी
क्यूँ हुआ ऐसा हाल दिन रात यही सोचा गया
मुसलसल खुशियों के लिये हल खोजा गया
एक दूसरे से फिर शिकवे शिकायतें रहने लगे
हमें संग रहना ही नहीं है अब यही कहने लगे
आएँ अब ज़रा गौर करें उनके इस हाल पर
क्यूँ यहाँ वक़्त इतराया था अपनी चाल पर
मसला कुछ ना था बात थी बस एहसास की
छोटी सी खुशी को भी बनाना था ख़ास सी
मोहब्बत थी चाह थी और थी एक दूजे की फिक्र
बस भूल रहे थे करना दोनों इसी बात का ज़िक्र
दिल का हाल बताएंगे नहीं तो पता कैसे चलेगा
मसरूफ ज़िंदगी में ये भेद बता दे कैसे खुलेगा
दर्द ए दिल अता होता है सब्र ही के इम्तिहान को
दिल में मुकम्मल करता है ये दिल के मेहमान को
रिश्तों को एहसासों की बारिश से खुशगवार रखना
जरूरी होता है कभी कभी मीठे बोलो से जादू करना