मौन
मौन
मौन भी एक अलग जुबानी है
बिन बोले भी सब कह दे
ऐसी एक अजब कहानी है
पर विडंबना इस बात की है
कि इसे सभी समझ ना पाते हैं
जो समझ गया वो भी मौन हो
जाते हैं
ये कभी रिश्ते तो कभी परिस्थिति
के संग ही आता है
जिसका सत्कार सिर्फ आंखें ही
कर पाता है
एक झलक पाकर ही मन का हाल
बयां कर जाता है
कभी झुककर तो कभी नम होकर
ढांढस की आस जगाते हैं
पर विवशता ऐसी की मुख से एक
बोल निकल ना पाता है
व्यथा औरों की मौन को लोग
अपना सम्मान समझ जाते हैं।