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Snehil Thakur

Abstract

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Snehil Thakur

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चंपी जिंदगी की..

चंपी जिंदगी की..

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चंपी करते हुए 

ख्याल आया जीवन का,

हर रोज़ संवारती हूँ, निखारती हूँ

फिर दूसरे दिन उलझ सी जाती है,

कुछ कमियों को काटकर

नई आदतों को गले लगाती हूँ

कुछ रिश्ते लम्हों में समेटे नहीं रह पाते,

उड़ते हैं, बिखरते हैं, 

बांधती हूं नन्ही सी कोशिश कर,

कुछ छूट जाते हैं 

अंजाने में चेहरे निखार देते है,

जिस दिन सुलझा ना पाऊं

और भी उलझते चले जाते हैं, 

समय के साथ

कई कहानियाँ धुल चुकी हैं,

शैंपू की खुशबू में घुल चुकी हैं,

सोचती हूं हर बार

बालों को संवारती हुई मैं,

जिंदगी कुछ ऐसी ही तो नहीं।



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