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Snehil Thakur

Abstract Classics Fantasy

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Snehil Thakur

Abstract Classics Fantasy

जीवन का अफसाना..

जीवन का अफसाना..

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जीवन का अफसाना लिखते-लिखते

जीना भूल गई वो, खुद से मिलने को 


तरसती, खामोशी में विचरती

शब्दों के सागर में डूबी, अपरिचित


अपने हिस्से से, दफ़न हुए तरानों

की सुध लेने की गुज़ारिश करती, 


उलझनों में अपनी खुद को महफूज़ पाती,

अंतर्मन को भुलाने में प्रयासरत वह


खिड़की से बाहर दूसरी दुनिया तलाशती

विफल हो गई इस बार भी, वह


चिल्लाई, चीखी व मूर्छित हो अपने ही

वजूद में सिमटी, चोटिल ठहरी रही।

-स्नेहिल

(स्वरचित)


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