एक भूला बिसरा बचपन
एक भूला बिसरा बचपन
मेरे बचपन की सुनहरी यादें
मेरे बचपन की वो प्यार भरी बातें
कहां खो गए वो हँसीन पल
क्यों गुजर गए बचपन के कल,
वो बहनों के साथ उधम चौकड़ी
वो दोस्तों संग खेले पकड़म पकड़ी
वो हरदम शरारत और छुपा छिपी
पानी में चलाते कागज की कश्ती,
ना दर्द का अहसास
ना कोई जबरदस्ती
बस घूमे यहां वहां
करें खूब मौज मस्ती,
मां की डांट फिर प्यार से गले लगाना
पापा को देख पल्लू में छिप जाना
कितना हंसीन कितना मीठा पल था
ना कल की चिंता ना कोई डर था,
बस खुशी खुशी दिन वो कट रहे थे
हंसी की चहचहाहट में दिन गुजर रहे थे
ना सुबह की कोई खबर
ना था ठि
काना शाम का
नानी की कहानियों में
अजब एक फसाना था,
वो प्यारा बचपन
आंखों में छुईमुई बन सिमट गया
बीते लम्हों की परछाई छोड़ गया
आंखों में ये आंसू
अब घिर घिर कर बहते हैं
बचपन का सुहाना सफर यादों में तैरते हैं,
लिखता हूं अक्सर मैं बचपन की कहानियां
तन्हाइयों मे जब गुजर जाती है ये जवानियां
बस ठहर गया हूं
अब रुक सा गया हूं
बचपन की यादों में ढह सा गया हूं,
बहुत कुछ बदला इन बीते सालों में
बचपन यादें हंसी के बहाने
अपने पराए मौसम वो दीवाने
सब याद आता है वो बचपन सुहाना
यादों की पोटली में
छिपा हुआ खजाना...!