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संजय असवाल "नूतन"

Abstract Fantasy Others

4.5  

संजय असवाल "नूतन"

Abstract Fantasy Others

तुझ से जो हो गई दूरियां....

तुझ से जो हो गई दूरियां....

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दूरियों ने तेरे मेरे बीच 

एक खाई सी बना डाली,

बातें थीं जो दिल में दबी

वो राख सी हो गईं काली।


चेहरे पर मेरे मुस्कान थी

पर भीतर सब सन्नाटा था,

रूह तक थक चुकी थी मेरी

पर जताना मुझे कहां आता था।


तेरे जाने का दर्द 

यूं नहीं कि बस आंसू बहते रहे,

ये चुभन तो वो है 

जो सांसों के साथ मेरे अंदर पलते रहे।


हर शाम तेरी यादें 

धीमें धीमें मुझे जला देती हैं,

और रातें गहरी तेरे साये को 

मेरे अंदर ज़िंदा कर देती हैं।


मैं जानता हूं मैंने रिश्तों को संभालने में 

खुद को कितना खोया था,

पर तू कहां मेरे जज्बात समझ पाई

मैं तेरे जाने में कितना रोया था।


तेरी खामोशी ने मेरे भीतर 

एक वीरान शहर सा बसा डाला,

जहां कभी तेरी हंसी थी 

अब वहां अंधेरों का है साया।


कहते हैं दूरियां वक्त के साथ 

थोड़ी हल्की हो जाती है,

पर सच तो यह है 

वो दिल में और गहरी हो जाती है।


अब तो मुझे आदत सी हो गई है 

तेरे बिना इस दर्द में जीने की,

जैसे एक किस्सा हूं मैं अधूरा

तेरी यादों से इस कहानी के बनने की।


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