एक दिन ऐसा आएगा...!!
एक दिन ऐसा आएगा...!!
एक दिन ऐसा आएगा
जब मन घर को दौड़ा जाएगा,
शहर की चकाचौंध छोड़ वो
तुम्हें अपनी जड़ों तक ले आएगा।
जहां मिट्टी की सोंधी खुशबू में
जीवन का मधुर गान बजेगा,
जहां ना दौड़ ना कोई पछतावा होगा
बस हर पल सुकून में ही बीतेगा।
एक दिन जब हम जान जाएंगे
इस भागते शहर का भ्रम क्या है,
जिसे पकड़ने सब दौड़ते फिरते
उसमें पलभर का ठहराव कहां है।
जब हम त्याग देंगे लालसाएं अपनी
ईर्ष्या-वासना की ज्वाला बुझेगी,
प्रकृति की शांत अलसाई गोद में
निंदियां रानी आंखों में बसेगी।
नभ के नीचे जहां बहती हवा
हर पग पर हरियाली होगी,
मन का बोझ उतरते-उतरते
आत्मा फिर मतवाली होगी।
एक दिन हम स्वयं को बदलेंगे
और समाज को राह दिखाएंगे,
कुरीतियों की जंजीरों को फिर
साहस से खुद ही तोड़ आयेंगे।
भलाई की रोशनी लेकर हम
फिर अंधियारे को रोज हराएंगे,
"मैं" नहीं "हम" की शक्ति बन
नव-युग का दीप जलाएंगे।
एक दिन जीवन में फिर से
सत्य-सेवा का स्वर गूंजेगा,
दुनियां चाहे कुछ भी कह ले
अंदर का इंसान ही जीतेगा।
एक दिन बस एक दिन ही तो
वक्त पथिक को याद दिलाएगा,
शहर की भीड़ से निकल कर वो
किसी गांव की गोद में ले आएगा।
सुख बाहर नहीं भीतर होता है
एक दिन समझ में जब आएगा,
जितना त्याग लो मन के बोझों को
जीवन उतना सरल हो जाएगा।
एक दिन जब यह बदलाव होगा
विश्वास के दीप तुम जगा देना,
आज नहीं तो कल ही सही
बस उस दिन को सच बना देना।
