जीवन पथ पर
जीवन पथ पर
अब जलती हुई सोच के पीछे क्या भागना,
सागर से लड़कर पहुँच गए हम साहिला पर,
कई विषम परिस्थितियों को साथ लेकर हम,
चले कीर्तिमान स्थापित करने की तलाश में,
मुश्किल भरी राहों में गिरते और संभलते हुए,
अभिनय आ ही गया हमें दुनिया के रंगमंच पर ,
दरिया के संग चलते -चलते राह हमने चुन ली,
लड़ना आ ही गया मंजिल पर खड़ी बाधाओं से,
सच और झूठ के बीच अंतर करना सीख लिया,
गिरगिट से बदलते रंगों को भी हमने परख लिया,
जलती सोच को पीछे छोड़ खुद को बदलना है,
जीवन पथ पर चलते हुए हमें बहुत संभलना है,
सबको आगे बढ़ने की जाने क्यों ये होड़ लगी है,
सब सपने सच हो बस इसकी अंधी दौड़ लगी है,
दिन में तपिश रात में सन्नाटा चहुँ ओर बिखरा है,
दोहरेपन का नकाब यहाँ चारों ओर ही पसरा है,
उस जलती हुई सोच से अब हमें क्यों लड़ना है,
जीवन पथ पर चलकर कर्तव्य मार्ग पर मरना है,
ना ख्वाहिशें ना फरमाइशें ना ही कोई लालच है,
खुद के अस्तित्व को ना भूलना बस यही आदत है,
व्यस्त भरी जिंदगी से दूर जहाँ न कोई सवाल हो,
आगे बढ़ता ही जाऊँ मिले तो सिर्फ वो जवाब हो,
भेदभाव से बहुत दूर निष्ठा की राह मैं चल रहा हूँ,
कर्तव्य पालन कर जीवन के पथ पर मैं बढ़ रहा हूँ I
